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Wednesday 1 June 2016

भोजपुरी मिठास को खत्म करते अश्लील भोजपुरी गाने

संतोष सेठ
देश में हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों का प्रतिनिधित्व भोजपुरी भाषी लोगों का है। भोजपुरी की मिठास और प्रेम इसकी भाषा से लोगों का दिल जीतती आयी है। विगत एक दशक में सिल्वर स्क्रीन द्वारा भोजपुरी को जिस तरह से व्यवसायिक हितों के लिए परोसा गया, उससे भोजपुरी के नैतिक जीवन मूल्यों में तेजी से गिरावट का अनुभव हुआ है। यही कारण है कि पढ़े-लिखे एवं समृद्ध घरों में भोजपुरी की जगह लोग खड़ी हिन्दी या अंग्रेजी बोलना पसंद करते हैं।
ऐसा नहीं है कि पहले भोजपुरी सिनेमा नहीं बनते रहे। मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर जैसे दिग्गज गायकों ने कई कालजयी भोजपुरी गाने गाये। जिनमें विदेसिया, गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ैईबे, दंगल, गंगा किनारे मोरा गांव, दुल्हा गंगा पार के, नदिया के पार जैसे तमाम फिल्मों के गानों ने उस समय के तत्कालीन भोजपुरी समाज एवं रिश्तों को जीवन मूल्यों के साथ प्रदर्शित किया और आज भी लोगों की जेहन में उन गानों की यादें बनी हुई है।
विगत एक दशक में भोजपुरी फिल्मों का ग्राफ बढ़ा है, लेकिन तेजी से गिरावट की तरफ बढ़ रहे जीवन मूल्यों को अगर नहीं रोका गया तो इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से समाज पर परिलक्षित होगा। तनी स जीन्स ढीला करा या छलकत मोर जवनियां या जगहे पर जाला जैसे गाने हमारे सांस्कृतिक बंधनों एवं संस्कारों को सिर्फ व्यवसायिक प्रतिद्वन्दिता के कारण नष्ट कर रहे हैं। भाभी, साली, बहन जैसे पूज्यनीय रिश्तों को कलंकित करते कुछ गानें तो इतने बुरे हैं कि उनकी चर्चा इस लेख में करना भी मुश्किल है।
आखिर कौन इजाजत देता है कि हमारी संस्कृति, सभ्यता और आदर्श जीवनमूल्यों को इस तरह से क्षरित होने दें। क्या भोजपुरी विकास मंच या अन्य भोजपुरी सामाजिक संस्थाएं इस दिशा में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन सही दिशा में कर रहा है? अपनी राय दें।

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