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Thursday 23 June 2016

उत्कृष्ट शोध के लिए घिसी पिटी अवधारणा से बचते हुए होना चाहिए सक्रिय

शोध प्राविधि एवं कम्यूटर एप्लीकेशन विषयक कार्यशाला का हुआ आयोजन
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वान्चल विश्वविद्यालय परिसर स्थित डा. राजनारायण गुप्ता, डा. यू पी सिंह एवं संकाय भवन स्थित कांफ्रेंस हाल में गुरूवार को शोध प्राविधि एवं कम्प्यूटर एप्लीकेशन विषयक आयोजित कार्यशाला के समानान्तर तकनीकी सत्रो में विद्वान विषय विशेषज्ञों द्वारा शोधार्थियों को शोध पत्र लेखन पर महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी। 
विज्ञान संकाय के शोधार्थियों को सम्बोधित करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसबी निम्से ने कहा कि शोध कार्य करते समय आधारभूत ज्ञान के स्रोत पर इमारत खड़ी करने की अवधारणा का ध्यान रखकर कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है। शोधार्थी को घिसी-पिटी अवधारणा से बचते हुए उत्कृष्ट शोध के लिए सक्रिय होना चााहिए। उन्होंने महान भारतीय गणितज्ञों के अनुसंधानो की चर्चा करते हुए विद्यार्थियों को उनसे प्रेरणा लेने की सलाह दी। उन्होने शोध विशेषज्ञों से वर्तमान में ज्वलन्त विषयों पर शोध करने की जरूरत पर बल दिया।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि शोध की गुणवत्ता के लिए विश्वविद्यालय द्वारा विशेष प्रयास किये जा रहे है। उन्होंने कहा कि आज देश में पर्याप्त इंजीनियर हैं लेकिन तकनीशियन कम हो रहे है। शोधकर्ता को वर्तमान से अवगत होते हुए भविष्यगत समस्याओं के निदान के लिए सार्थक शोध करना होगा। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से शोधार्थियों की सोच को व्यापक बनाने की कोशिश की गयी है। 
बीएचयू में रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. लल्लन मिश्र ने विद्यार्थियों को शोध के तरीकों पर विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने विद्यार्थियों को मौलिक शोध लेखन पर महत्वपूर्ण टिप्स दिये। 
फ्लोरिडा यूएसए के डा. राकेश कुमार सिंह ने शोध में नई चुनौतियों पर चर्चा की। बीएचयू में समाजशास्त्र के प्रो. एके कौल ने कहा कि वैश्विक कारण के चलते समाजिक विचारधाराओं में बदलाव हुआ है। ऐसे में इसको दृष्टिगत रखते हुए शोध प्राविधि में बदलाव की जरूरत है। 
बीएचयू में प्रबन्ध संकाय के प्रो. शशि श्रीवास्तव ने विद्यार्थियों से कहा कि समाचार पत्र भी हमें नये-नये शोध विषय की संकल्पना देते रहते है। 
बीएचयू में प्रबन्ध संकाय के प्रो. आरके लोधवाल ने शोध डिजाइन पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कि आज का शोधार्थी अपने विषय चयन में ही काफी समय दे देता है, जबकि यह समय वह अपने शोध कार्य में दे सकता है।
समाजिक विज्ञान संकाय के शोधार्थियों को सम्बोधित करते हुए काशी विद्यापीठ के प्रो. राममोहन पाठक ने शोध प्राविधि, मौलिक लेखन एवं स्रोत विषय विद्वानो के संदर्भ में विस्तार से चर्चा की। 
संम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय में शिक्षा शास्त्र विभाग के प्रो. वाचस्पति द्विवेदी ने शोधार्थियों को शोध प्रबन्ध लेखन पर उपयोगी जानकारी दी। आज कार्यशाला में विश्वविद्यालय के एमबीइ, एचआरडी, एमबीए, कामर्स, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र एवं समाज शास्त्र के पंजीकृत शोधार्थी का अन्तिम दिन था। विज्ञान संकाय के विद्यार्थी कल तक कार्यशाला में उपस्थित रहेगें। शिक्षा संकाय तथा समाजिक विज्ञान संकाय के विद्यार्थी 26 जून तक कार्यशाला में भाग लेंगे। 
विवेकानन्द केन्द्रीय पुस्तकालय में बीएचयू के डिप्टी लाईब्रेरियन डा. संजीव सर्राफ ने शोध हेतु पुस्तकों की महत्ता एवं उनकी उपयोगिता पर चर्चा की।
मानद पुस्तकालयाध्यक्ष डा. मानस पाण्डेय ने जर्नल, टेक्स्ट बुक्स, रिफरेंसबुक्स तथा इडिटेड किताबों के जरिये शोध हेतु विद्यार्थियों को विस्तृत व्याख्यान दिया। पुस्तकालय में आये हुए शोधार्थियों को डा. विद्युत कुमार मल ने शोध गंगा के बारे में विस्तार पूर्वक बताया। 
 कार्यशाला समन्वयक प्राचार्य डा. शिवशंकर सिंह ने शोधार्थियों को शोध प्रबंध लेखन एवं डाटा संग्रहण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। 
इस अवसर पर डा. राकेश सिंह, उप कुल सचिव संजीव सिंह, डा. रामनारायण, डा. एसपी तिवारी डा. राजेश शर्मा, डा. मनोज मिश्र, डा. रशिकेश, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, ऋषि श्रीवास्तव, डा. आलोक दास, डा. सुशील सिंह, डा. आलोक सिंह, डाॅ. के.एस. तोमर, अनिल श्रीवास्तव, श्याम श्रीवास्तव, आनन्द सिंह, पंकज सिंह, सहित विश्वविद्यालय के शोधार्थी एंव प्रतिभागी मौजूद रहे। संचालन संकायाध्यक्ष डा. एच.सी. पुरोहित, स्वागत आयोजन सचिव डा. वन्दना राय द्वारा एवं आभार डा आशुतोष सिंह द्वारा  किया गया।

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