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Saturday 18 June 2016

स्थापत्य कला का अद्भुत उदारहण है चार अंगुल मस्जिद

डा. ब्रजेश कुमार यदुवंशी
ऐतिहासिक नगर जौनपुर का नाम विश्वविख्यात है। मध्यकाल में इसे शीराज-ए- हिन्द के नाम से पहचान मिली। इस पहचान के पीछे यहां की शिक्षा, कला, संस्कृति व स्थापत्य कला का बहुत बड़ा योगदान है। शर्की कालीन इमारतें आज भी अपने अतीत पर इतरा रही हैं। शर्की कालीन मस्जिदों का जवाब नहीं, स्थापत्य कला का अद्भुत प्रदर्शन। इसी कड़ी में है जौनपुर की चार अंगुल मस्जिद जिसको खालिस मुखलिस मस्जिद के नाम से जाना जाता है।

 इस मस्जिद का निर्माण सन् १४३० ई. में संत सैय्यद उस्मान शिराजी के सम्मान में सुल्तान इब्रााहिम शाह शर्की के दो मुख्य वफादार मलिक खालिस और मलिक मुखलिस ने करवाया। मस्जिद के मुख्य द्वार के बाईं तरफ दक्षिणी तोरण स्तम्भ पर एक ऐसा पत्थर लगा है जिसकी ख्याति इस बात की है कि नापने पर यह पत्थर चार अंगुल ही होता है। वास्तव में संत सैय्यद उस्मान शिराजी जो शीराज शहर (ईरान) में पैदा हुए थे। ये इस्लाम धर्म के प्रचार प्रसार हेतु भारत आये थे और दिल्ली में रह रहे थे। तैमूर के दिल्ली पर आक्रमण से अत्यन्त अफरा-तफरी से ऊबकर जौनपुर आ गये थे। इनके वंशज आज भी मस्जिद के इर्द-गिर्द रहते हैं। वैसे तो ईरानी मूल के लोग सिपाह मोहल्ले में सैकड़ों की संख्या में आबाद हैं। इनका व्यवसाय ऐनक व अंगूठी पत्थर बेचने का है। सिपाह मोहल्ले का नामकरण ही ईरानी है। सिपाह का अर्थ है छावनी जहां पर सिपाही रहते हैं। इसी क्रम में है चहारसू जिसका अर्थ होता है चारों दिशा, जहां से चारों तरफ यानी चारों दिशा में जाने का मुक्कमल रास्ता। विश्वविख्यात रहा ईरान का शहर शीराज जो शिक्षा का बहुत बड़ा इदारा रहा। 

मध्यकाल में जौनपुर शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र बना जिसके कारण जौनपुर को कहा गया शीराजे हिन्द। चार अंगुल मस्जिद की सम्पूर्ण रचना साधारण है। इस मस्जिद में मुख्य तोरण द्वार के दक्षिणी तरफ जिस प्रकार से आकर्षक मेहराब युक्त दो गुम्बद बने हैं, उसी प्रकार मुख्य तोरण द्वार के उत्तरी तरफ भी दो कक्ष बने थे जिसे सिकन्दर लोदी ने तुड़वा दिया था। यह मस्जिद आज भी अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रही है। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाय।
साभार:तेजस टूडे

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