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Thursday 14 July 2016

मंत्र, तंत्र, यंत्र और षड़यंत्र

अनादि काल से भारतवर्ष ऋषियों, मनिषियों की भूमि रही है। ज्ञान के अथाह सागर से पूरे विश्व को समरसता का सोपान कराने वाला यह देश समय-समय पर नये-नये विचारों को अपने जीवन में शामिल करता रहा है। एक समय था जब अपने तपोबल से ऋषियों और मुनियों ने मंत्र सिद्धि के बल पर सृष्टि और प्राकृतिक शक्तियों के संचय के द्वारा अपनी मंत्र विद्या से विकास की गाथा लिखी। उस कालखण्ड में प्राकृतिक संसाधनों और शब्दों के सृजन से देवताओं और शक्तियों को मंत्र द्वारा अपने वश में किया गया। यह हमारे मनीषियों के पुरूषार्थ का परिणाम रहा कि मंत्र शक्ति द्वारा ऐसे-ऐसे आविष्कार किये गये जो आज भी प्रासंगिक हैं।
मंत्र युग के बाद मानव विकास में तंत्र युग आया। ऐसे में राजनीति और शासक प्रवृत्ति के लोगों ने ऐसे-ऐसे तंत्र विकसिक किये जिससे पूरी मानव सभ्यता को चलाया जा सकता है। सामाजिक संरचना, राजनीति के तमाम पद, कृषि नीति, सामाजिक वर्ण व्यवस्था, प्राकृतिक शक्तियों का दोहन इत्यादि को सुचारू रूप से चलाने के लिए इस तंत्र व्यवस्था की स्थापना की गयी जो वर्तमान समाज में भी परिलक्षित होती है।
तंत्र युग के विकास के साथ ही मनुष्य को जीने के लिए जीवन उपयोगी संसाधनों के उपयोग के लिए मानव शक्ति के साथ-साथ यांत्रिक शक्ति की भी जरूरत पड़ी। पहिये और आग की खोज के बाद आज कम्प्यूटर युग तक हम अपने अगल-बगल गौर करें तो यांत्रिक संसाधनों के बगैर हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। इस यांत्रिक क्रांति ने मनुष्य के जीवन को आसान बनाया है और कार्य को गति प्रदान की है। आज वही देश सबसे बड़े माने जाते हैं जहां की यांत्रिक शक्ति अत्याधुनिक और मजबूत है।
मनुष्य के विकास के साथ ही समाज की विघटनकारी शक्तियों का भी विकास हुआ है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि समाज में हमेशा ही समता बनी रही है। तमाम दुश्वारियां भी पैदा होती रही हैं। आज के युग को निश्चित रूप से षड़यंत्र युग के नाम से भी जाना जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि आतंकवाद, जातिवाद, रंगभेद, छुआछुत, नस्लवाद और तमाम ऐसी शक्तियां भी पनप रही है जो समाज को तोड़ने के लिए अपनी भरपूर ऊर्जा का प्रयोग कर रही है। लोगों में भ्रान्तियां फैलाकर, लोगों को आपस में लड़ाकर ये शक्तियां मानव समाज के लिए जहर घोलने का काम कर रही है। ऐसे में आम जनमानस को इन षड़यंत्रकारी शक्तियों को पहचान कर समाज में समरसता एवं एकजुटता लाना कठिन प्रतीत हो रहा है।
शुभांशू जायसवाल

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