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Friday 15 July 2016

आप कैसे भारतीय हैं?

हम भारतीयों में से कुछ की भारतीयता हमेशा दांव पर लगी रहती है, तो कुछ का दांव भारतीयता पर। जिनका दांव भारतीयता पर लगा रहता है, वे ही दूसरों की भारतीयता को दांव पर लगाये रहते हैं। वे सारा काम-धंधा छोड़ कर हरदम इसी काम में मशगूल रहते हैं, जिससे कभी-कभी तो यह लगने लगता है कि इनके पास कोई काम-धंधा नहीं है क्या? उनके पास कोई काम-धंधा होता भी हो, तो भी वे उससे फुरसत के कुछ पल निकाल कर यह काम कर ही लेते हैं। वे हर आते-जाते आदमी को निगाहों ही निगाहों में तोलते हैं और शक होने पर या शक न होने पर भी पूछ बैठते हैं कि क्या आप भारतीय हैं? अगर वह चुप रह जाता है, भले ही यह सोच कर चुप रह जाता हो कि कैसा आदमी है यह जो इस तरह के बेतुके सवाल पूछ रहा है, तो वे मान लेते हैं कि बेशक यह भारतीय नहीं है और अगर वह तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे देता है कि तुझसे मतलब? तो वे इसका पक्का मतलब यह निकाल लेते हैं कि हो न हो, यह भारतीय न होकर तुर्की है।
हम भारतीय बेशक पहले भारतीय ही होते हैं, बाद में कुछ और, लेकिन ध्यान हम पहले कुछ और होने पर ही देते हैं, बाद में भारतीय होने पर, बल्कि कुछ और होने पर इतना ज्यादा जोर देते हैं कि बाद में भारतीय होने पर जोर देने का कोई मतलब नहीं रह जाता। सबसे पहले तो हम किसी से बात तक करने से पहले उसकी जाति के बारे में मुतमईन हो लेना चाहते हैं। अभी कुछ दिन पहले मेरा मेरठ जाना हुआ। वहां बड़े-बड़े विलाज की एक सोसाइटी के अध्यक्ष ने मुझसे मेरे मूल गांव के बारे में पूछने के बाद छूटते ही कहा कि वह तो त्यागियों का गांव है, आप भी जरूर त्यागी होंगे? यह सुनकर मुझे फौरन उनसे बातचीत त्यागकर अपने त्यागी होने का सबूत देना पड़ गया। ऐसे ही हमारे पड़ोसी के एक दूसरे घर के किरायेदार उन्हें किराया देने आये, तो उनकी पत्नी ने बातों ही बातों में पूछ लिया कि बहनजी, आपकी जात क्या है? जब उन्होंने जवाब दिया, तो किरायेदार पति-पत्नी हें-हें करते हुए बोले कि क्यों मजाक करते हो, आप लगते नहीं हो।
उनका आशय यह था कि उनकी जाति के लोग तो ऐसे खाते-पीते हो ही नहीं सकते, उन्हें तो दलिद्दर टाइप का ही होना चाहिए, लिहाजा यह मजाक ही कर रहे होंगे। कभी-कभी तो बाई तक काम पकड़ने से पहले काम करवाने वालों की जाति पूछ लेती है। हमारी भारतीयता धर्म पर भी टिकी है। हम यह भी निश्चित कर लेना चाहते हैं कि अगला किस धर्म का है, ताकि उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाये। अपने धर्म पर हमारा भरोसा हमें दूसरे के धर्म पर बिलकुल भरोसा नहीं करने देता। लिहाजा दूसरे के धर्म से हमेशा खतरे में रहने वाले अपने धर्म की रक्षा हमें अधर्म से करनी पड़ती है। ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ ऐसे ही नहीं कहा गया है। उधर पूर्वोत्तर भारत के लोग भी बताओ, अपने को भारतीय कहते हैं! उनकी औकात जताने के लिए उत्तर-भारतीयों को जब-तब उनके साथ ज्यादती करनी पड़ती है।
मणिपुरी लड़की से हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन अधिकारी तक उसकी राष्ट्रीयता को लेकर सवाल कर बैठता है कि तुम भारतीय ही हो? लगती तो नहीं हो। हो तो भारतीय राज्यों के नाम बताओ। मैं हालांकि उसे संदेह का लाभ देते हुए कहना चाहूंगा कि हो सकता है, उसके कहने का यह मतलब हो कि इतनी सुंदर लड़की भारतीय नहीं हो सकती और वह अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए उससे राज्यों के नाम पूछ रहा हो। बेटी, मेहरबानी करके तुम यही समझ कर उसे माफ कर देना।
डॉ. सुरेश कांत

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