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Sunday 29 May 2016

सूचना कानून को ठेंगा दिखा रहे जनसूचना अधिकारी

उजागर हो रहा है अधिकारियों का नक्कारापन
केराकत, जौनपुर (सं.) 29 मई। जनसूचना अधिकार कानून को भले ही सशक्त और प्रभावशाली बनाने की बात होती हो लेकिन हकीकत यह है कि खुद अधिकारी इस महत्वाकांक्षी कानून की धज्जियां उड़ाने का काम कर रहे हैं। जवाबदेही से बचने के लिये अधिकारी न केवल इस कानून की हवा निकाल रहे हैं, बल्कि टाल-मटोल का रास्ता भी अख्तियार करते हुये सही सूचना देने की बजाय अपनी गर्दन बचाने हेतु एक-दूसरे के कंधे पर जवाबदेही तय करके अपना बचाव कर रहे हैं।
ऐसा ही एक मामला केराकत तहसील क्षेत्र का है जिसमें सीधे तौर पर न केवल सूचना कानून की अवहेलना हुई है, अपितु अधिकारियों का नक्कारापन भी साफ तौर पर उजागर हो रहा है। बताते चलें कि स्थानीय क्षेत्र के तरियारी गांव निवासी अमित कुमार ने जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अर्न्तगत पिछले वर्ष 17 दिसम्बर को जनसूचना अधिकारी/उपजिलाधिकारी केराकत से दो बिंदुओं पर जानकारी चाही थी।
उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत ग्राम पंचायत तरियारी में ग्राम प्रधान के चुनाव में प्रयुक्त एवं आवंटित मतों की संख्या, बूथवार, मतपत्र पर अंकित नम्बर के साथ प्रारूप में देने सहित ग्राम प्रधान तरियारी के प्रधान पद पर निर्वाचित शीला को प्राप्त मतपत्रों की छाया प्रति जिन पर मतपत्रों का सीरियल नम्बर पठनीय हो, की जानकारी मांगी थी जिसे आज तक उपलब्ध नहीं कराया गया। 
मजे की बात तो यह है कि इस मामले को लेकर वह उपजिलाधिकारी केराकत, खण्ड विकास अधिकारी केराकत व जिलाधिकारी कार्यालय से भी फरियाद लगा चुका है लेकिन सभी ने कांनों में तेल डाल रखा है। हद तो यह है कि जवाब संतोषजनक न देकर एक-दूसरे के कंधे पर जवाबदेही का भार सौंपा जा रहा है जिसे ढोने को कोई तैयार नहीं है।
इसके अलावा 22 दिसम्बर 2005 को अमित कुमार ने जनसूचना अधिकारी राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश सहित जिलाधिकारी से भी इन्हीं दोनों बिंदुओं पर 28 दिसम्बर 2015 को जनसूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी थी जिसके जवाब में राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश पंचायत एवं नगरीय निकाय ने प्रभारी अधिकारी जनसूचना अधिकारी जिला निर्वाचन कार्यालय पंचायत एंव नगरीय निकाय जौनपुर को सूचना देने के लिये अन्तरित किया था। मजे की बात है कि सभी ने संतोषजनक जवाब देने के बजाय मामले को लटकाये ही रखने में रूचि लिया है।
इस मामले में राज्य निवार्चन आयोग सहित जिलाधिकारी का आदेश भी मातहत अधिकारियों के लिये कोई मायने नहीं रखता है। उपजिलाधिकारी कार्यालय खण्ड विकास अधिकारी को जानकारी देने के लिये कह रहा है तो वह इससे इनकार कर रहा है। कार्यालय कहना है कि उसके यहां कोई ऐसा अभिलेख ही नहीं है। यह तो रही अधिकारियों की कारगुजारी। ऐसे में समझा जा सकता है कि अधिकारी सूचना अधिकार कानून के प्रति गम्भीर और सजग है।

आखिरकार पीछे क्यों हटे उपजिलाधिकारी केराकत!
केराकत, जौनपुर (सं.) 29 मई। उपजिलाधिकारी की हठधर्मिता नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि कई दिनों के बाद भी सूचना प्राप्त न होने पर जब प्रार्थी स्वयं उपजिलाधिकारी कार्यालय में उनसे मिलकर सूचना देने का अनुरोध किया तो वह भड़क उठे और बोले दूसरे से मांगों, मै नहीं देता सूचना....।
जिला से लेकर तहसील प्रशासन तथा ब्लाक स्तर तक दौड़ लगाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो पाया तो थक-हार करके पीड़ित अमित कुमार ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव व ऊर्जा राज्यमंत्री को पत्र भेजकर गुहार लगाते हुये पंचायती राज्यमंत्री से स्वयं मिलकर अपनी व्यथा प्रकट किया तो पंचायती राज्यमंत्री ने जब उपजिलाधिकारी से इस संदर्भ में पूछा तो उन्होंने बड़े ही सधे अंदाज में दो दिनों में सूचना उपलब्ध कराने की बात कही। यही बात जब ऊर्जा राज्यमंत्री ने मोबाइल से उपजिलाधिकारी से 27 दिसम्बर 2015 को की तो उन्होंने इन्हें भी वही दो दिन में सूचना दे देने की बात कह टरका दिया।
अब सहज ही समझा जा सकता है कि एक फरियादी की फरियाद का किस प्रकार से निराकण उपजिलाधिकारी केराकत करते हैं और उनके लिये मंत्री आदि आदेश क्या मायने रखते हैं। इतना ही नहीं, उपजिलाधिकारी कार्यालय की करामात देखिये। गुमराह करने के लिये व अपनी नाकामियों को छिपाने के लिये यशोधरा बनाम श्रीमती शीला के मामले में यशोधरा को मुकदमे के सिलसिले में तारीख की जो सूचना दी गयी, वह भ्रमित करने वाली रही। एक ही सूचना में दो-दो तिथियां दी गयीं, ताकि वह भ्रमित होकर रह जाय। हालांकि ऐसा कुछ हो नहीं पाया।
मजे की बात है कि जब इसकी जानकारी कम्प्यूटरीकृत वाद की प्रिंट कापी निकलवाकर ली गयी तो सब कुछ साफ हो गया कि उपजिलाधिकारी कार्यालय से खेल हो रहा है। वह भी एक पक्ष को लाभ पहुंचाने की नियत से।

मामले को लेकर दायर हुई याचिका
केराकत, जौनपुर (सं.) 29 मई। जनसूचना अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी में बरती जा रही हीला-हवाली व अधिकारियों की हठवादी रवैये से खिन्न होकर मामले को लेकर न्यायालय की शरण ली गयी है।
केराकत तहसील क्षेत्र के तरियारी गांव निवासिनी यशोधरा देवी ने उच्च न्यायालय में यशोधरा प्रति राज्य उत्तर प्रदेश आदि के खिलाफ याचिका दायर करते हुये समूचे प्रकरण में अधिकारियों, खासकर उपजिलाधिकारी केराकत की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़ा किया है।
इसे न्यायालय ने गम्भीरता से लेते हुये त्वरित कार्यवाही के लिये आदेशित किया है। अब देखना यह है कि अधिकारी न्यायालय के आदेश को किस गम्भीरता से लेते हैं और कहां तक उसका अनुपालन सुनिश्चित करते हैं।

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